अन्वयार्थ : [संसारो पंचविहो] संसार (परिभ्रमण) पाँच प्रकार का है [दव्वे] द्रव्य (पुद्गल द्रव्य में ग्रहणत्यजनरूप परिभ्रमण)[खेत्ते] क्षेत्र (आकाश के प्रदेशों में स्पर्श करने रूप परिभ्रमण)[य तहेव काले] तथा काल (काल के समयों में उत्पन्न / नष्ट होने रूप परिभ्रमण)[भवभमणो य चउत्थो] भव (नरकादि भव का ग्रहण त्यजनरूप परिभ्रमण) और [पंचमओ भावसंसारो] पांचवां भाव-परिभ्रमण (अपने कषाययोगों के स्थानकरूप भेदों के पलटनेरूप परिभ्रमण) ।
छाबडा
छाबडा :
अब इनका स्वरूप कहते हैं, पहिले द्रव्य-परिवर्तन को बतलाते हैं -