छाबडा :
मिथ्यात्व कषाय के वश से, ज्ञानावरणादि कर्मों का समय-प्रबद्ध अभव्य-राशि से अनन्तगुणा सिद्ध-राशि के अनन्तवें भाग पुद्गल-परमाणुओं का स्कन्धरूप कार्माण-वर्गणा को समय-समय प्रति ग्रहण करता है । जो पहले ग्रहण किये थे वे सत्ता में हैं, उनमें से इतने ही समय-समय नष्ट होते हैं । वैसे ही औदारिकादि शरीरों का समय-प्रबद्ध शरीर-ग्रहण के समय से लगाकर आयु की स्थिति-पर्यंत ग्रहण करता है वा छोड़ता है । इस तरह अनादि-काल से लेकर अनन्त बार ग्रहण करना और छोड़ना होता है । वहाँ एक परावर्तन के प्रारम्भ में प्रथम समय के समयप्रबद्ध में जितने जितने पुद्गल परमाणु जैसे स्निग्ध रूक्ष वर्ण गन्ध-रूप रस तीव्र-मन्द मध्यम-भाव से ग्रहण किये हों उतने ही वैसे ही कोई समयमें फिर से ग्रहण करने में और भांति के परमाणु ग्रहण होते हैं वे नही गिने जाते हैं । वैसे के वैसे फिर से ग्रहण करने को अनन्तकाल बीत जाय उसको एक द्रव्य परावर्तन कहते है । इस तरह के इस जीव ने इसलोक में अनन्त परावर्तन किये हैं । अब क्षेत्र-परावर्तन को कहते हैं - |