+ क्षेत्र परावर्तन -
सो को वि णत्थि देसो लोयायासस्स णिरवसेसस्स
जत्थ ण सव्वो जीवो जादो मरिदो य बहुवारं ॥68॥
अन्वयार्थ : [णिरवसेस्‍स लोयायासस्‍स] समस्‍त लोकाकाश के प्रदेशों में [सो को वि देसो णत्थि] ऐसा कोई भी प्रदेश नहीं है [जत्‍थ सव्‍वो जीवो] जिसमें ये सब ही संसारी जीव [बहुवारं जादो य मरिदो ण] कई बार उत्‍पन्‍न न हुए हों तथा मरें न हों ।

  छाबडा 

छाबडा :

समस्‍त लोकाकाश के प्रदेशों में यह जीव अनन्‍तबार तो उत्‍पन्‍न हुआ और अनन्‍तबार ही मरण को प्राप्‍त हुआ। ऐसा प्रदेश रहा ही नहीं जिसमें उत्‍पन्‍न नहीं हुआ हो और मरा भी न हो । लोकाकाश के असंख्‍यात प्रदेश हैं । उसके मध्‍य के आठ प्रदेशों को बीच में देकर, सूक्ष्‍म-निगोद लब्धि-अपर्याप्‍तक जघन्‍य अवगाहना का धारी वहाँ उत्पन्न होता है । उसकी अवगाहना भी असंख्‍यात प्रदेश है । मध्‍य में और जगह अन्‍य अवगाहना से उत्‍पन्‍न होता है उसकी तो गिनती ही नहीं है । बाद में एक-एक प्रदेश क्रम से बढ़ती हुइ अवगाहना पाता है सो गिनती में है, इस तरह महामच्‍छ तक की उत्कृष्ट अवगाहना को पूरी करता है । वैसे ही क्रम से लोकाकाश के प्रदेशों का स्‍पर्श करता है तब एक क्षेत्र परावर्तन होता है ।

अब काल परावर्तन को कहते हैं -