+ भव परावर्तन -
णेरइयादिगदीणं अवर-ट्ठिदो वरट्ठिदी जाव
सव्वट्ठिदिसु वि जम्मदि जीवो गेवेज्जपज्जंतं ॥70॥
अन्वयार्थ : [जीवो] संसारी जीव [णेरइयादिगदीणं] नरकादि चा‍र गतियों की [अवरट्ठिदो] जघन्‍य स्थिति से लगाकर [वरट्ठिदी जाव] उत्‍कृष्‍ट स्थिति पर्यंत (तक) [सव्‍वट्ठदिसु] सब अवस्‍थाओं में [गेवेज्‍जपज्‍जंतं] ग्रैवेयक पर्यन्‍त [जन्‍मदि] जन्‍म पाता है ।

  छाबडा 

छाबडा :

नरकगति की जघन्‍य-स्थिति दस हजार वर्ष की है इसके जितने समय है उतनी बार तो जघन्‍य-स्थिति की आयु लेकर जन्‍म पावे, बाद में एक समय अधिक आयु लेकर जन्‍म पावे । बाद में दो समय अधिक आयु लेकर जन्‍म पाव । ऐसे ही अनुक्रम से तैंतीस सागर पर्यंत आयु पूर्ण करे, बीच-बीच में घट बढ़कर आयु लेकर जन्‍म पावे वह गिनती में नहीं है । इसी तरह तिर्यंच-गति को जघन्‍य आयु अन्‍तरमुहूर्त्त, उसके जितने समय हैं उतनी बार जघन्‍य आयु का धारक होवे बाद में एक समय अधिक क्रम से तीन पल्‍य पूर्ण करे, बीच में घट-बढ़कर आयु लेकर जन्‍म पावे वह गिनती में नहीं हैं । इसी तरह मनुष्‍य की जघन्‍य से लगाकर उत्‍कृष्‍ट तीन पल्‍य पूर्ण करे । इसी तर‍ह देवगति की जघन्‍य दस हजार वर्ष से लगाकर ग्रैवेयक के उत्‍कृष्‍ट इकतीस सागर तक समय-अधिक-क्रम से पूर्ण करे । ग्रैवेयक के आगे उत्‍पन्‍न होनेवाला एक दो भव लेकर मोक्ष ही जावे इसलिये उसको गिनती में नहीं लाये । इस तरह इस भव-परावर्तन का अनन्‍त-काल है ।

अब भाव-परावर्तन को कहते हैं -