+ उपसंहार -
एवं अणाइ-काले पंच-पयारे भमेइ संसारे
णाणा दुक्ख-णिहाणे जीवो मिच्छत्त-दोसेण ॥72॥
अन्वयार्थ : [एवं] इस तरह [णाणादुक्‍खणिहाणो] अनेक प्रकार के दु:खो के निधान [पंचपयारे] पाँच प्रकार [संसारे] संसार में [जीवो] यह जीव [अणाइकालं] अनादिकाल से [मिच्छत्त-दोसेण] मिथ्‍यात्‍व के दोष से [भमेइ] भ्रमण करता है ।

  छाबडा 

छाबडा :

अब संसार से छुटने का उपदेश करते हैं -