
इय संसारं जाणिय मोहं सव्वायरेण चइऊणं
तं झायह स-सरू वं संसरणं जेण णासेइ ॥73॥
अन्वयार्थ : [इय संसार जाणिय] इस तरह संसार को जानकर [सव्वायरेण] सब तरह के प्रयत्न-पूर्वक [मोहं] मोह को [चइऊण] छोड़कर [तं समरूपं झायह] उस आत्मस्वरूप का ध्यान करो [जेण] जिससे [संसरणं] संसार परिभ्रमण [णासेइ] नष्ट हो जावे ।
छाबडा