+ भेद-भावना की प्रेरणा -
सव्वायरेण जाणह इक्कं जीवं सरीरदो भिण्णं
जम्हि दु मुणिदे जीवो होदि असेसं खणे हेयं ॥79॥
अन्वयार्थ : [इक्‍कं जीवं सरीरदो भिण्‍णं] अकेले जीव को शरीर से भिन्‍न [सव्‍वायरेण जाणह] सब प्रकार के प्रयत्‍न करके जानो [जम्हि दु जीवो सुणिदे] जिस जीव के जान लेने पर [असेसं खणे हेयं होदि] अवशेष (बाकी बचे) सब पर-द्रव्‍य क्षण-मात्र में त्‍यागने योग्‍य होते हैं ।

  छाबडा 

छाबडा :

जब जीव अपने स्‍वरूपको जानता है तब ही पर-द्रव्‍य हेय ही भासते हैं, इसलिये अपने स्‍वरूप ही के जानने का महान् उपदेश है ।

एक जीव परजाय बहु, धारै स्‍वपर निदान ।
पर तजि आपा जानिकै, करौ भव्‍य कल्‍यान ॥४॥