+ अन्यत्व अनुप्रेक्षा का स्वरूप -
अण्णं देहं गिण्हदि जणणी अण्णा य होदि कम्मादो
अण्णं होदि कलत्तं अण्णो वि य जायदे पुत्तो ॥80॥
अन्वयार्थ : [देहं गिण्हदि] देह को ग्रहण करता है [अण्‍णं] सो अपने से अन्‍य (भिन्‍न) है [य] और [जणणी अण्‍णा] माता भी अन्‍य है [कलत्तं अण्‍णं होदि] स्‍त्री भी अन्‍य होती है [पुत्तो वि य अण्‍णो जायदे] पुत्र भी अन्‍य ही उत्‍पन्‍न होता है [कम्‍मादो होदि] ये सब कर्म संयोग से होते हैं ।

  छाबडा