
एवं बाहिर-दव्वं जाणदि रूवादु अप्पणो भिण्णं
जाणंतो वि हु जीवो तत्थेव हि रच्चदे मूढो ॥81॥
अन्वयार्थ : [एवं] इस प्रकार [वाहिरदव्वं] सब बाह्य वस्तुओं को [अप्पणो] अपने [रूवादु] स्वरूप से [भिण्णं] भिन्न [जाणदि] जानता है [जाणंतो वि हु] तो भी प्रत्यक्षरूप से जानता हुआ भी [मृढो] यह मूढ़ [जीवो] जीव [तत्थेव य रच्चदे] उन पर-द्रव्यों में ही राग करता है ।
छाबडा