
छाबडा :
जो देहादिक पर-द्रव्यों को भिन्न जानकर अपने नित्य ज्ञानानन्द स्वरूप का सेवन करता है उसके अन्यत्व-भावना कार्यकारिणी है । दोहा
इति अन्वत्वरनुप्रेक्षा समाप्ता ॥५॥
निज आतमतैं भिन्न पर, जानै जे नर दक्ष । निज में रमैं वमैं अपर, ते शिव लखैं प्रत्यक्ष ॥ |