
सयल-कुहियाण पिंडं किमि-कुल-कलियं अउच्च-दुग्गंधं
मल-मुत्ताण य गेहं देहं जाणेहि असुइमयं ॥83॥
अन्वयार्थ : [देहं] इस देह को [असुइमयं] अपवित्रमयी [सयलकुहियाण पिंडं] सकल कुत्सित पदार्थों का पिंड [किमिकुलकलियं] कृमि तथा अनेक प्रकार के निगोदादिक जीवों से भरा [अउच्चदुग्गंधं] अत्यन्त दुर्गंधमय [मलमुत्ताणं य गेहं] मल-मूत्र का घर [जाणेहि] जान ।
छाबडा
छाबडा :
इस शरीर को सब अपवित्र वस्तुओं का समूह जानना चाहिए ।
अब कहते हैं कि यह देह अन्य सुगन्धित वस्तुओं को भी अपने संयोग से दुर्गंधित करता है -
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