+ ग्रन्थ करने की प्रतिज्ञा -
लोकत्रयैकनेत्रं निरूप्य परमागमं प्रयत्नेन ।
अस्माभिरुपोद्‌ध्रियते विदुषां पुरुषार्थसिद्ध्युपायोऽयम्‌ ॥3॥
जो त्रिलोक का एक नेत्र, जाना प्रयत्न से आगम को ।
यह पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय है प्रगट करूँ विद्वानों को ॥३॥
अन्वयार्थ : [लोकत्रयैकनेत्रम्] तीन लोक को देखने वाले नेत्र समान [परमागमं] उत्कृष्ट आगम (जैन-सिद्धांत) को [प्रयत्नेन] अनेक प्रकार के उपायों से (भले प्रकार) [निरूप्य] जानकर [अस्माभिः] हमारे द्वारा [अयं] यह [पुरुषार्थसिद्ध्युपाय:] पुरुषार्थसिद्ध्युपाय (नामक ग्रन्थ) [विदुषां] विद्वान् पुरुषों के लिये [उपोद्ध्रियते] उद्धार करने में आता है ।
Meaning : After having carefully studied the Highest Scripture, which affords a matchless vision of the three worlds, I proceed to expound, for the sake of scholars, this (treatise) Purushartha-Siddhyupaya.

  टोडरमल