+ वक्ता का लक्षण -
मुख्योपचार विवरण निरस्तदुस्तरविनेय दुर्बोधा: ।
व्यवहार निश्चयज्ञा: प्रवर्तयन्ते जगति तीर्थम् ॥4॥
मुख्य और उपचार कथन से शिष्यों का अज्ञान हरें ।
जानें निश्चय अरु व्यवहार सुधर्म-तीर्थ उद्योत करें ॥४॥
अन्वयार्थ : [मुख्योपचार विवरण] मुख्य और उपचार कथन के विवेचन [दुस्तरविनेय] प्रकटरूपेण दुर्निवार [दुर्बोधा:] अज्ञान [निरस्त] नाशक [व्यवहार निश्चयज्ञाः] व्यवहार और निश्चय के ज्ञाता [प्रवर्त्तयन्ते जगति तीर्थम्] जगत में धर्म-तीर्थ का प्रवर्तन कराते हैं ॥४॥
Meaning : True philosophy is promulgated in the Universe, by those who, themselves conversant with the real and the practical aspects, dispel the difficult-to-be-removed ignorance of pupils by an exposition of both the absolute and the relative aspects of things.

  टोडरमल