
व्यवहारनिश्चयौ य: प्रबुध्य तत्त्वेन भवति मध्यस्थ: ।
प्राप्नोति देशनाया: स एव फलमविकलं शिष्य: ॥8॥
निश्चय अरु व्यवहार नयों का जान-स्वरूप रहे मध्यस्थ ।
जिनवाणी को सुनने का फल पूर्ण प्राप्त करता वह शिष्य ॥८॥
अन्वयार्थ : [य:] जो जीव [व्यवहारनिश्चयौ] व्यवहारनय और निश्चयनय को [तत्त्वेन] वस्तुस्वरूप से [प्रबुध्य] यथार्थरूप से जानकर [मध्यस्थ:] मध्यस्थ [भवति] होता है अर्थात् निश्चयनय और व्यवहारनय के पक्षपातरहित होता है, [स:] वह [एव] ही [शिष्य:] शिष्य [देशनाया:] उपदेश का [अविकलं] सम्पूर्ण [फलं] फल [प्राप्नोति] प्राप्त करता है ॥८॥
Meaning : That student alone achieves the full benefit of teaching, who, having well understood both Vyavahara and Nishchaya, in their true nature, becomes neutral.
टोडरमल