+ जीव कर्त्ता और भोक्ता -
परिणममानो नित्यं ज्ञानविवर्त्तैरनादिसन्तत्या ।
परिणामानां स्वेषां स भवति कर्त्ता च भोक्ता च ॥10॥
वह अनादि सन्तति से ज्ञान-विवर्तनमय परिणमन करे ।
निज परिणामों में परिणमता कर्त्ता-भोक्ता हुआ करे ॥१०॥
अन्वयार्थ : [स:] वह (चैतन्य आत्मा) [अनादिसन्तत्या] अनादि की परिपाटी से [नित्यं ज्ञानविवर्त्तै:] निरन्तर ज्ञानादि गुणों के विकाररूप (रागादि परिणामों) से [परिणममान:] परिणमन करता हुआ [स्वेषां परिणामानां] अपने (रागादि) परिणामों का [कर्त्ता च भोक्ता च] कर्ता और भोक्ता भी [भवति] होता है ॥१०॥
Meaning : Undergoing, through illusory knowlege, constant changes since eternity, it causes and experiences its own thought activities.

  टोडरमल