
अक्रमकथनेन यतः प्रोत्साहमानोऽतिदूरमपि शिष्यः।
अपदेऽपि सम्प्रतृप्तः प्रतारितो भवति तेन दुमर्तिना ॥19॥
उस दुर्मति के अक्रम कथन से मुनिव्रत में उत्साहित शिष्य ।
अरे! ठगाया गया तुच्छ पद में ही वह होकर सन्तुष्ट ॥१९॥
अन्वयार्थ : [यतः तेन] जिस कारण से उस [दुर्मतिना] दुर्बुद्धि के [अक्रमकथनेन] क्रमभंग कथनरूप उपदेश करने से [अतिदूरम्] अत्यंत दूर तक [प्रोत्साहमानोऽपि] उत्साहवान् होने पर भी [शिष्यः अपदे अपि] शिष्य तुच्छ-स्थान में ही [संप्रतृप्तः] संतुष्ट होकर [प्रतारितः भवति] ठगाया जाता है ।
Meaning : Because, on account of the ill-regulated discourses of the unwise , even the disciple, who had pitched up his resolution high, is made to content himself only with a low position and is thus misled.
टोडरमल