
जीवाजीवादीनां तत्त्वार्थानां सदैव कर्त्तव्यम् ।
श्रद्धानं विपरीताभिनिवेश विविक्तमात्मरूपं तत् ॥22॥
जीव-अजीव आदि तत्त्वार्थों का श्रद्धान सदा कर्तव्य ।
विपरीताभिनिवेश रहित यह श्रद्धा ही है आत्मस्वरूप ॥२२॥
अन्वयार्थ : [जीवाजीवादीनां तत्त्वार्थानां] जीव-अजीवादि तत्त्वार्थों का [श्रद्धानं] श्रद्धान [विपरीताभिनिवेश विविक्तम्] विपरीत चिंतन छोड़कर [सदैव कर्त्तव्यम्] निरंतर करना चाहिए [आत्मरूपं तत्] वह आत्मा का स्वरूप है ॥२२॥
Meaning : One should always have firm belief in Jiva, Ajiva, and the other principles, as they are, free from perverse notions. It is the nature of the Self.
टोडरमल