+ निर्विचिकित्सा अंग -
क्षुत्तृष्णाशीतोष्णप्रभृतिषु नानाविधेषु भावेषु ।
द्रव्येषु पुरिषादिषु विचिकित्सा नैव करणीया ॥25॥
क्षुधा तृषा सर्दी गर्मी इत्यादि विविध संयोगों में ।
ग्लानि कभी भी नहिं करना मल-मूत्रादि परद्रव्यों में॥25॥
अन्वयार्थ : [क्षुत्तृष्णाशीतोष्णप्रभृतिषु] भूख, प्यास, सरदी, गरमी इत्यादि [नानाविधेषु भावेषु] नाना प्रकार के भावों में और [द्रव्येषु पुरिषादिषु] विष्टा आदि पदार्थों में [विचिकित्सा नैव करणीया] ग्लानि नहीं करनी चाहिए ॥२५॥
Meaning : He should not exhibit a feeling of disgust at the various conditions caused by hunger, thirst, cold, heat, etc. or at the sight of excrement etc. This is termed Nirvichkitsita Anga.

  टोडरमल