+ अमूढद्रष्टि अंग -
लोके शास्त्राभासे समयाभासे च देवताभासे ।
नित्यमपि तत्त्वरुचिना कर्त्तव्यममूढदृष्टित्वम् ॥26॥
लोक, शास्त्र-आभास समय-आभास देव-आभासों में ।
तत्त्वों में रुचिवन्त पुरुष श्रद्धान मूढ़ता रहित करें ॥26॥
अन्वयार्थ : [लोके शास्त्राभासे] लोक में, शात्राभ्यास में, [समयाभासे च देवताभासे] धर्माभास में और देवाभास में [तत्त्वरुचिना नित्यमपि] तत्त्वों में रुचिवान (सम्यग्दृष्टि) को सदा ही [अमूढदृष्टित्वम् कर्त्तव्यम] मूढ़ता-रहित दृष्टि (श्रद्धान) करनी चाहिए ।
Meaning : In this world, he who has faith in the Tattwas (the seven principles) should never have a superstitious belief in a fallacious scripture, an unreal doctrine, or a false deity.

  टोडरमल