+ स्थितिकरण अंग -
कामक्रोधमदादिषु चलयितुमुदितेषुवर्त्मनो न्यायात् ।
श्रुतमात्मनः परस्य च युक्त्या स्थितिकरणमपि कार्यम् ॥28॥
काम क्रोध लोभादिक प्रगटे, न्याय मार्ग से चलित करें ।
शास्त्रों के अनुसार स्व-पर दोनों का स्थितिकरण करें॥28॥
अन्वयार्थ : [कामक्रोधमदादिषु] काम, क्रोध, मद, लोभादि [न्यायात् वर्त्मन:] न्यायमार्ग (धर्ममार्ग) से [चलयितुम् उदितेषु] विचलित करवाने के लिए प्रगट हुआ होने पर [श्रुतं आत्मन: परस्य च] शास्त्र अनुसार अपनी और पर की [स्थितिकरणं अपि कार्यम्] स्थिरता भी करनी चाहिए ।
Meaning : In case of deviation from the path of righteousness, under the influence of anger, pride, the sexual passion etc., he should strengthen his own knowledge and that of others by argument.

  टोडरमल