+ वात्सल्य अंग -
अनवरतमहिंसायां शिवसुखलक्ष्मीनिबन्धने धर्मे ।
सर्वेष्वपि च सधर्मिषुपरमं वात्सल्यमालम्ब्यम् ॥29॥
अन्वयार्थ : [शिवसुखलक्ष्मीनिबन्धने] मोक्ष-सुख-स्वरूप सम्पदा के कारणभूत [धर्मे अहिंसायां च] धर्म और अहिंसा पूर्वक [सर्वेष्वपि सधर्मिषु] सभी साधर्मी जनों में [अनवरतं] निरंतर [परमं] उत्कृष्ट [वात्सल्यं] वात्सल्य (प्रीति) का [आलम्ब्यम्] आलम्बन करना चाहिए ।
Meaning : One should ever cherish feelings of deep affection for religion, which brings about the treasure of spiritual happiness, and for the principle of non-injury, and also for coreligionists.

  टोडरमल