कर्त्तव्योऽध्यवसायःसदनेकान्तात्मकेषु तत्त्वेषु ।
संशयविपर्य्ययानध्यवसायविविक्तमात्मरुपं तत् ॥35॥
सम्यक् अनेकान्तमय तत्त्वों का निर्णय है करने योग्य ।
संशय और विपर्यय-मोह विहीन ज्ञान है आत्मस्वरूप ॥३५॥
अन्वयार्थ : [सदनेकान्तात्मकेषु] प्रशस्त अनेकान्तात्मक (अनेक स्वभाववाले) [तत्त्वेषु अध्यवसाय: कर्त्तव्य:] तत्त्वों (पदार्थों) में उद्यम करने योग्य है और [तत् संशयविपर्य्ययानध्यवसायविविक्तं] वह (सम्यग्ज्ञान) संशय, विपर्यय और विमोह रहित [आत्मरूपं] आत्मा का निजस्वरूप है ।
Meaning : Effort should be made to understand the existing many-natured principles. Such knowledge free from doubt,perversity, and vagueness, is really the very quality of the self.d

  टोडरमल