ग्रन्थार्थोभयपूर्णं काले विनयेन सोपधानं च ।
बहुमानेन समन्वितमनिह्नवं ज्ञानमाराध्यम् ॥36॥
शब्द अर्थ अरु उभय काल-आचार विनय उपधानाचार ।
करो ज्ञान का आराधन बहुमान-अनिह्नवमय आचार ॥३६॥
अन्वयार्थ : [ग्रन्थार्थोभयपूर्णं शब्दरूप] ग्रन्थरूप अर्थरूप और उभय अर्थात् शब्द-अर्थरूप शुद्धता से परिपूर्णता से, [काले विनयेन] काल विनय से [च सोपधानं बहुमानेन समन्वितं] और धारणा-युक्त अत्यन्त सन्मान से सहित तथा [अनिह्नवं ज्ञानं आराध्यम्] (गुरु, शास्त्रकार्ता, ज्ञान आदि को) बिना छिपाये ज्ञान की आराधना करना योग्य है ।
Meaning : Let there be a devotion to knowledge, with a cor. rect use of the words, with a full acquaintance of their mean ings, with a combination of both, at proper times, with due respect, in proper manner, accompanied with great zeal and without concealment.

  टोडरमल