
न हि सम्यग्व्यपदेशं चरित्रमज्ञानपूर्वकं लभते ।
ज्ञानानन्तरमुक्तं चारित्राराधनं तस्मात् ॥38॥
यदि अज्ञान सहित चारित्र हो सम्यक्नाम न प्राप्त करे ।
अत: ज्ञान-सम्यक् पाकर ही आराधन-चारित्र कहें ॥३८॥
अन्वयार्थ : [अज्ञानपूर्वकंचरित्रं] अज्ञान पूर्वक चारित्र [सम्यग्व्यपदेशं न हि लभते] सम्यक् नाम प्राप्त नहीं करता [तस्मात् ज्ञानानन्तरं] इसलिए सम्यग्ज्ञान के पश्चात् ही [चारित्राराधनं उक्तम्] चारित्र का आराधन कहा है ।
Meaning : Conduct which follows ignorance can never be designated as "Right"; therefore, the acquisition of Right Conduct is lectured upon subsequent to "Knowledge".
टोडरमल