
हिंसातोऽनृतवचनात्स्तेयादब्रह्मतः परिग्रहतः ।
कार्त्स्न्यैकदेशविरतेश्चारित्रं जायते द्विविधम् ॥40॥
है घात निज परिणाम का, इससे सभी हिंसामयी ।
हैं मात्र बोधन-हेतु शिष्यों, को कहे अनृतादि भी ॥४२॥
अन्वयार्थ : [हिंसातोऽनृतवचनात्स्तेयादब्रह्मतः] हिंसा से, असत्य भाषण से, चोरी से, कुशील से और परिग्रह से [कार्त्स्न्यैकदेशविरते:] सर्वदेश और एकदेश विरक्ति से वह [चारित्रं जायते द्विविधम्] चारित्र दो प्रकार का हो जाता है ।
Meaning : As distinguished by total or limited abstinence from injuring, falsehood, theft, unchastity, and worldly attachment, Conduct is of two kinds.
टोडरमल