
निरतः कार्त्स्न्यनिवृत्तौ भवति यतिः समयसारभूतोऽयम् ।
या त्वेकदेशविरतिर्निरतस्तस्यामुपासको भवति ॥41॥
जो पूर्ण विरति में निरत, मुनि समयसार स्वरूप हैं ।
जो एकदेश विरति निरत, उनके उपासक वही हैं ॥४१॥
अन्वयार्थ : [कार्त्स्न्यनिवृत्तौ निरत:] सर्वथा-सर्वदेश त्याग में लीन [अयं यति: समयसारभूत: भवति] ये मुनि शुद्धोपयोगरूप स्वरूप में आचरण करनेवाला होता है [या तु एकदेशविरति:] और जो एकदेशविरति है [तस्यां निरत: उपासक: भवति] उसमें लगा हुआ उपासक होता है ।
Meaning : When engaged in complete abstention one becomes a saint, the personification of pure Jiva. He who is engaged in partial restraint only, would be a disciple,
टोडरमल