
आत्मपरिणामहिंसनहेतुत्वात्सर्वमेव हिंसैतत् ।
अनृतवचनादिकेवलमुदाहृतं शिष्यबोधाय ॥42॥
है घात निज परिणाम का, इससे सभी हिंसामयी ।
हैं मात्र बोधन-हेतु शिष्यों, को कहे अनृतादि भी ॥४२॥
अन्वयार्थ : [आत्मपरिणामहिंसनहेतुत्वात्] आत्मा के शुद्धोपयोगरूप परिणामों के घात होने के कारण [एतत्सर्वं हिंसैव] यह सब हिंसा ही है [अनृतवचनादि केवलं] असत्य वचनादिक के भेद केवल [शिष्यबोधाय उदाहृतम्] शिष्यों को समझाने के लिए कहे गए हैं ।
Meaning : All this indulgence is "Himsa" because it injures the real nature of Jiva. Falsehood, etc., are only given by way of illustration, for the instruction of the disciple,
टोडरमल