
अप्रादुर्भावः खलु रागादीनां भवत्यहिंसेति ।
तेषामेवोत्पत्तिर्हिंसेति जिनागमस्य संक्षेपः ॥44॥
रागादि उत्पत्ति नहीं है, वास्तविक यह अहिंसा ।
उनकी हि उत्पत्ति कही, हिंसा जिनागम सारता ॥४४॥
अन्वयार्थ : [खलु रागादीनां अप्रादुर्भाव:] वास्तव में रागादि भावों का प्रगट न होना [इति अहिंसा भवति] यही अहिंसा है और [तेषामेव उत्पत्ति:] उन रागादि भावों का उत्पन्न होना ही [हिंसा भवति] हिंसा है, [इति जिनागमस्य संक्षेप:] ऐसा जैन सिद्धान्त का सार है ।
Meaning : Assuredly, the non appearance of attachment and other is Ahimsa, and their appearance is Himsa. This is a summary of the Jaina Scripture.
टोडरमल