
व्युत्थानावस्थायां रागादीनां वशप्रवृत्तायाम् ।
म्रियतां जीवो मा वा धावत्यग्रे ध्रुवं हिंसा ॥46॥
नित अयत्नाचारी दशा, रागादि भावाधीनता ।
से वर्तते के मरे या, नहिं मरे ध्रुव हिंसा सदा ॥४६॥
अन्वयार्थ : [रागादीनां वशप्रवृत्तायाम्] रागादिभावों के वश में प्रवर्तती हुई [व्युत्थानावस्थायां] अयत्नाचाररूप प्रमाद अवस्था में [जीव: म्रियतां वा मा] जीव मरो अथवा मत मरो [हिंसा ध्रुवं अग्रे धावति] हिंसा सतत आगे ही दौड़ती है ।
Meaning : And, if one acts carelessly, moved by the influence of passions, there certainly advances Himsa in front of him whether a living being is killed or not.
टोडरमल