
यस्मात्सकषायः सन् हन्त्यात्मा प्रथममात्मनात्मानम् ।
पश्चाज्जायेत न वा हिंसा प्राण्यन्तराणां तु ॥47॥
क्योंकि कषायी जीव पहले, आत्मघात करे स्वयं ।
पश्चात् प्राणीघात हो नहिं, हो सदा ही अनिश्चित ॥४७॥
अन्वयार्थ : [यस्मात् आत्मा सकषाय: सन्] क्योंकि जीव कषाय-सहित हो तो [प्रथमं आत्मना] प्रथम अपने से ही [आत्मानं हन्ति] अपने को घातता है [तु पश्चात्] और बाद में [प्राण्यन्तराणां हिंसा] दूसरे जीवों की हिंसा [जायेत वा न] हो अथवा न हो ।
Meaning : Because under the influence of passion, the person first injures the self, through the self; whether there is subse. quently an injury caused to another being or not.
टोडरमल