
सूक्ष्मापि न खलु हिंंसा परवस्तुनिबन्धना भवति पुंसः ।
हिंसायतननिवृत्तिः परिणामविशुद्धये तदपि कार्या ॥49॥
अत्यल्प भी हिंसा नहिं, परवस्तु के कारण कभी ।
पर भाव शुद्धि हेतु हिंसा, आयतन छोड़ो सभी ॥४९॥
अन्वयार्थ : [खलु पुंसः परवस्तुनिबन्धना] निश्चय से आत्मा के पर-वस्तु के कारण से जो उत्पन्न हो ऐसी [सूक्ष्महिंसा अपि न भवति] किंचित-मात्र भी हिंसा भी नहीं होती [तदपि परिणामविशुद्धये] तो भी परिणाम की निर्मलता के लिये [हिंसायतननिवृत्ति: कार्या] हिंसा के स्थान का त्याग करना उिचत है ।
Meaning : A mere contact with external objects, will not make & person guilty of Himsa. Even then, for the purification of thought, one ought to avoid external causes leading to Himsa.
टोडरमल