
निश्चयमबुध्यमानो यो निश्चयतस्तमेव संश्रयते ।
नाशयति करणचरणं स बहिःकरणालसो बालः ॥50॥
नहिं जान निश्चय उसे ही, है मूढ निश्चय से करे ।
स्वीकार वह करणालसी, बहि:करण चरण सभी नशे ॥५०॥
अन्वयार्थ : [यः निश्चयं अबुध्यमानः] जो परमार्थ को नहीं जानते हुए [तमेव नियमत: संश्रयते] उसे ही नियम से अंगीकार करता है [स बालः बहि: करणालसः] वह मूर्ख बाह्य-क्रिया में आलसी होता हुआ [करणचरणं नाशयित] चारित्र के कारण का नाश करता है ।
Meaning : He, who, ignorant of the real point of view, takes shelter therein in practice, is a fool, and being indifferent to external conduct, he destroys all practical discipline.
टोडरमल