+ उसके आठ सूत्र -
अविधायापि हि हिंसां हिंसाफलभाजनं भवत्येकः ।
कृत्वाप्यपरो हिंसा हिंसाफलभाजनं न स्यात् ॥51॥
नित एक हिंसा कर भी हिंसा, फल नहीं है भोगता ।
पर अन्य हिंसा नहीं कर भी, हिंस फल को भोगता ॥५१॥
अन्वयार्थ : [हिंसा अविधायापि हि] हिंसा न करते हुए भी निश्चय से [हिंसाफलभाजनं भवत्येकः] एक जीव हिंसा के फल को भोगता है और [कृत्वाप्यपरो हिंसा] दूसरा हिंसा करके भी [हिंसाफलभाजनं न स्यात्] हिंसा के फल को नहीं भोगता ।
Meaning : One who does not actually commit Himsa, becomes responsible for the consequences of Himsa; and another who actually commits Himsa, would not be liable for the fruit of Himsa.

  टोडरमल