कस्यापि दिशति हिंसा हिंसाफलमेकमेव फलकाले ।
अन्यस्य सैव हिंसा दिशत्यहिंसाफलं विपुलम् ॥56॥
हिंसाफलमपरस्य तु ददात्यहिंसा तु परिणामे ।
इतरस्य पुनर्हिंसा दिशत्यहिंसाफलं नान्यत् ॥57॥
यह किसी को हिंसा उदय में, एक हिंसामय फले ।
पर किसी को हिंसा अहिंसा, का विपुल फल दे फले ॥५६॥
हो अहिंसा भी पर उदय में, किसी को हिंसा फले ।
पर अन्य को हिंसा निरन्तर, अहिंसा फल में फले ॥५७॥
अन्वयार्थ : [कस्यापि हिंसा फलकाले] किसी को तो हिंसा उदयकाल में [दिशति हिंसाफलमेकमेव] एक ही हिंसा का फल दिखाती है और [अन्यस्य सैव हिंसा] दूसरे किसी को वही हिंसा [दिशत्यहिंसाफलं विपुलम्] बहुत हिंसा का फल दिखाती है ।
[तु अपरस्य] और किसी को [अहिंसा परिणामे] अहिंसा उदयकाल में [हिंसाफलं ददाति] हिंसा का फल देती है [तु पुनः इतरस्य] तथा दूसरे को [हिंसा अहिंसाफलं दिशित] हिंसा अहिंसा का फल दिखाती है, [अन्यत् न] अन्य नहीं ।
Meaning : Himsa gives lo one at the time of fruition, the con. sequence of Himsa only'; to another that same Himsa gives considerable Ahimsa reward.
In result, Ahimsa gives to one the consequence of Himsa; to another Himsa gives the benefit of Ahimsa. It is not otherwise.

  टोडरमल