
इतिविविधभङ्गगहने सुदुस्तरे मार्गमूढद्रष्टीनाम् ।
गुरवो भवन्ति शरणं प्रबुद्धनयचक्रसञ्चाराः ॥58॥
यों दुर्गमी बहु भंगमय, घन में सुपथ भूले हुए ।
को नय चलाने में चतुर, बस गुरु ही नित शरण हैं ॥५८॥
अन्वयार्थ : [इतिविविधभङ्गगहने सुदुस्तरे] इस प्रकार अत्यन्त किठनता से पार हो सकनेवाले अनेक प्रकार के भंगों से युक्त गहन वन में [मार्गमूढद्रष्टीनाम्] मार्ग भूले हुए को [प्रबुद्धनयचक्रसञ्चाराः] अनेक प्रकार के नय-समूह के ज्ञाता [गुरवो भवन्ति शरणं] श्रीगुरु ही शरण होते हैं ।
Meaning : In this forest of various points of view, difficult to be traversed, only the masters who have a thorough acquaintance with the application of different view-points, can help those who are ignorant of the Path.
टोडरमल