+ उपसंहार -
अत्यंतनिशितधारं दुरासदं जिनवरस्य नयचक्रम् ।
खण्डयति धार्यमाणं मूर्धानं झटिति दुर्विदग्धानाम् ॥59॥
जिनवर कथित नय चक्र अति ही, तीक्ष्णधारी दुरासद ।
धारण किए दुर्विदग्धों के, करे शीश झटिति पृथक् ॥५९॥
अन्वयार्थ : [अत्यंतनिशितधारं दुरासदं] अत्यन्त तीक्ष्ण धारवाला, दुःसाध्य [जिनवरस्य नयचक्रम्] जिनेन्द्र-भगवान का नयचक्र [धार्यमाणं] धारण करने पर [दुर्विदग्धानाम्] मिथ्याज्ञानी पुरुष के [मूर्धानं झटिति] मस्तक को तुरन्त ही [खण्डयति] खण्ड-खण्ड कर देता है ।
Meaning : The wheel of Jain view-points, extremely sharpedged, and difficult to be warded off, would, when used by misguided intellects, cut off (their) heads, quickly.

  टोडरमल