+ उपसंहार -
अष्टावनिष्टदुस्तरदुरितायतनान्यमूनि परिवर्ज्य ।
जिनधर्मदेशनाया भवन्ति पात्राणि शुद्धधियः ॥74॥
अनिष्ट दुस्तर घोर पाप, मयी ये आठों छोड़कर ।
हो शुद्धधी जिनधर्म के, उपदेश का है पात्र तब ॥७४॥
अन्वयार्थ : [अनिष्टदुस्तरदुरितायतनानि] दु:खदायक दुस्तर और पाप के स्थान [अमूनि अष्टा परिवर्ज्य] ऐसे आठों का परित्याग करके [शुद्धधिय: जिनधर्मदर्शनाया:] निर्मल बुद्धिवाले पुरुष जैन-धर्म के उपदेश के [पात्राणि भवन्ति] पात्र होते हैं ।
Meaning : Those pure intellects, who renounce the above eight things, which cause painful and insufferable calamity, render themselves worthy of Jain discipline.

  टोडरमल