
धर्मो हि देवताभ्यः प्रभवति ताभ्यः प्रदेयमिह सर्वम् ।
इति दुर्विवेककलितां धिषणां न प्राप्य देहिनो हिंस्या ॥80॥
नत धर्म देवों से प्रगट, यों उन्हें देय यहाँ सभी ।
इस दुर्विवेकी मति को, पा नहिं करो हिंसा कभी ॥८०॥
अन्वयार्थ : [हि धर्म: देवताभ्य: प्रभवति] निश्चय से धर्म देवों से उत्पन्न होता है, इसलिए [इह ताभ्य: सर्वं प्रदेयम्] इस लोक में उनके लिये सभी कुछ दे देना चाहिए [इति दुर्विवेककलितां] ऐसी अविवेक से ग्रसित [धिषणां प्राप्य] बुद्धि प्राप्त करके [देहिन: न हिंस्या:] शरीरधारी जीवों को नहीं मारना चाहिए ।
Meaning : Never entertain the wrong idea that religion flourishes through gods, and that therefore everything may be offered to them. Do not kill embodied beings, under such perverted judgment,
टोडरमल