+ गुरुओं के लिए हिंसा का निषेध -
पूज्यनिमित्तं घाते छागादीनां न कोऽपि दोषोऽस्ति ।
इति संप्रधार्य कार्यं नातिथये सत्त्वसंज्ञपनम् ॥81॥
सब पूज्य हेतु अजादि के, घात में कुछ दोष नहिं ।
यों सोच अतिथि हेतु भी, नहिं जीवघात करो कभी ॥८१॥
अन्वयार्थ : [पूज्यनिमित्तं छागादीनां] पूज्य पुरुषों के लिये बकरा वगैरह जीवों को [घाते क: अपि दोष: नास्ति] घात करने में कोई भी दोष नहीं है [इति संप्रधार्य अतिथये] ऐसा विचारकर अतिथि के लिए [सत्त्वसंज्ञपनम् न कार्यम्] जीवों का घात नहीं करना चाहिए ।
Meaning : Animals should not be killed for guests in the belief that there is no harm in killing goats, etc., for the sake of persons deserving respect.

  टोडरमल