
बहुसत्त्वघातजनितादशनाद्वरमेकसत्त्वघातोत्थम् ।
इत्याकलय्य कार्यंनमहासत्त्वस्य हिंसनं जातु ॥82॥
बहु जीव घातोत्पन्न, भोजन से भला इक जीव की ।
हिंसामयी भोजन विचार, करो न हिंसा बड़े की ॥८२॥
अन्वयार्थ : [बहुसत्त्वघातजनितान्] बहुत जीवों के घात से उपजे [अशनात् एकसत्त्वघातोत्थम्] भोजन की अपेक्षा एक जीव के घात से उत्पन्न हुआ भोजन [वरम् इति आकलय्य] अच्छा है, ऐसा विचारकर [जातु महासत्त्वस्य] कभी भी बड़े त्रस जीव का [हिंसनं न कार्यम्] घात नहीं करना चाहिए ।
Meaning : With the idea that a meal prepared from the slaugh. ter of one livingbeing is preferable to that produced by the destruction of many lives, one should never kill a living being of a higher grade.
टोडरमल