+ हिंसक जीवों की भी हिंसा न करे -
रक्षा भवति बहूनामेकस्यैवास्य जीवहरणेन ।
इति मत्वा कर्त्तव्यं न हिंसनं हिस्त्रसत्त्वानाम् ॥83॥
इस एक के ही घात से, बहु जीव रक्षा नित्य ही ।
यों मान हिंसक जीव की भी, करो हिंसा नहिं कभी ॥८३॥
अन्वयार्थ : [अस्य एकस्य एव जीवहरणेन] इस एक ही जीव-घात करने से [बहूनाम् रक्षा भवति] बहुत जीवों की रक्षा होती है', [इति मत्वा हिंस्रसत्त्वानाम्] ऐसा मानकर हिंसक जीवों की भी [हिंसनं न कर्त्तव्यम्] हिंसा नहीं करना चाहिए ।
Meaning : . Beings which kill others should not be killed in the belief that the destruction of one of them leads to the protection of many others.

  टोडरमल