+ हिंसक जीवों को दया वश भी न मारे -
बहुसत्त्वघातिनोऽमी जीवन्त उपार्जयन्ति गुरु पापम् ।
इत्यनुकम्पां कृत्वा न हिंसनीयाः शरीरिणो हिंस्त्राः ॥84॥
बहु जीव घाती घोर पाप, करें यदि जीवित रहें ।
यों करो हिंसक जीव की भी, नहीं हिंसा दया से ॥८४॥
अन्वयार्थ : [बहुसत्त्वघातिन: अमी] 'बहुत जीवों के घातक यह जीव [जीवन्त: गुरु पापम् उपार्जयन्ति] जीवित रहेंगे तो बहुत पाप उपार्जित करेंगे' [इति अनुकम्पां कृत्वा] इस प्रकार की दया करके [हिंस्रा: शरीरिण:] हिंसक जीवों को [न हिंसनीया:] नहीं मारना चाहिए ।
Meaning : "These kill many lives, and accumulate grave sin" Doing this act of mercy, those who injure others should not be killed.

  टोडरमल