
द्रष्टजाापरं पुरस्तादशनाय क्षामकुक्षिमायान्तम् ।
निजमांसदानरभसादालभनीयो न चात्मापि ॥89॥
अति देख भोजन हेतु आए, क्षुधित को निज माँस ही ।
दें दान ऐसा सोच तुम, निज आत्मघात करो नहीं ॥८९॥
अन्वयार्थ : [च अशनाय] और भोजन के लिये [पुरस्तात् आयान्तम्] पास आये हुए [अपरं क्षामकुक्षिम् दृष्ट्वा] अन्य भूखे पुरुष को देखकर [निजमांसदानरभसात्] अपने शरीर का माँस देने की उत्सुकता से [आत्मापि न आलभनीय:] अपना भी घात नहीं करना चाहिए ।
Meaning : One should not kill himself by zealously giving one's own flesh as food to another starving person, seen approaching in front.
टोडरमल