
को नाम विशति मोहं नयभङ्गविशारदानुपास्य गुरून् ।
विदितजिनमतरहस्यः श्रयन्नहिंसां विशुद्धमति ॥90॥
नय भेद बहुज्ञाता गुरु, सेवक रहस्य जिनमत विदित ।
निर्मलमति ले अहिंसा, आश्रय नहीं हो विमोहित ॥९०॥
अन्वयार्थ : [नयभंगविशारदान् गुरून्] नय के भंगों को जानने में प्रवीण गुरुओं की [उपास्य विदितजिनमतरहस्य:] उपासना करके जैनमत का रहस्य जाननेवाला [को नाम विशुद्धमति:] ऐसा कौन निर्मल बुद्धिधारी है जो [अहिंसां श्रयन्] अहिंसा का आश्रय लेकर [मोहं विशति] मूढ़ता को प्राप्त होवे?
Meaning : What person is there who, having a clear intellect, having served teachers well-versed in the various points of view, baving realized the essence of the Jaina religion and having adopted Ahimsa, would yield to the delusions
टोडरमल