
स्वक्षेत्रकालभावैः सदपि हि यस्मिन्निषिध्यते वस्तु ।
तत्प्रथममसत्यं स्यान्नास्ति यथा देवदत्तोऽत्र ॥92॥
निज द्रव्य क्षेत्र रु काल भाव, से सत्य वस्तु का किया ।
जिसमें निषेध विलोप-सत, पहला नहीं देवदत्त कहा ॥९२॥
अन्वयार्थ : [यस्मिन् स्वक्षेत्रकालभावै:] जिसमें अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से [सत्अपि वस्तु निषिध्यते] विद्यमान होने पर भी वस्तु का निषेध करने में आता है, [तत् प्रथमम् असत्यं स्यात्] वह प्रथम असत्य है [यथा अत्र देवदत्त: नास्ति] जैसे 'यहाँ देवदत्त नहीं है' ।
Meaning : A statement by which the existence of a thing with reference to its position, time, and nature is denied,first kind of falsehood ; for example. to say " Deva Datta is not here," .
टोडरमल