+ अप्रिय असत्य -
अरतिकरं भीतिकरं खेदकरं वैरशोककलहकरम् ।
यदपरमपि तापकरं परस्यतत्सर्वमप्रियं ज्ञेयम् ॥98॥
नित अरति भीति खेदकारक, वैर शोक कलह करें ।
हों और भी संतापकारक, आदि सब अप्रिय कहें ॥९८॥
अन्वयार्थ : [यत् परस्य अरतिकरं] जो वचन दूसरों को अप्रीतिकारक, [भीतिकरं खेदकरं] भयकारक, खेदकारक [वैरशोककलहकरं अपरमपि] वैर, शोक तथा कलहकारक हो और तो अन्य जो भी सन्तापकारक हो [तत् सर्वं अप्रियं ज्ञेयम्] वह सर्व ही अप्रिय जानो ।
Meaning : Know all that as Apriya, which causes uneasiness, fear, pain, hostility, grief, quarrel, or anguish of mind to another person.

  टोडरमल