+ असत्य वचन हिंसात्मक -
सर्वस्मिन्नप्यस्मिन्प्रमत्तयोगैकहेतुकथनं यत् ।
अनृतवचनेऽपि तस्मान्नियतं हिंसा समवतरति ॥99॥
नित है प्रमादी योग हेतु, मात्र ही इन सभी में ।
इससे सतत हिंसा हुई, है मान अनृत वचन में ॥९९॥
अन्वयार्थ : [यत् अस्मिन् सर्वस्मिन्नपि] चूँकि इन सभी वचनों में [प्रमत्त योगैकहेतुकथनं] प्रमाद सहित योग ही एक हेतु कहने में आया है [तस्मात् अनृतवचने] इसलिए असत्य वचन में [अपि हिंसा नियतं समवतरति] भी हिंसा निश्चितरूप से आती है ।
Meaning : Pramatta Yoga, the one (chief) cause (of Himsa) is present in all these (speeches) here. Therefore Himsa comes in, certainly, in falsehood also.

  टोडरमल