+ चोरी का वर्णन -
अवितीर्णस्य ग्रहणं परिग्रहस्य प्रमत्तयोगाद्यत् ।
तत्प्रत्येयं स्तयं सैव च हिंसा वधस्य हेतुत्वात् ॥102॥
जो नित प्रमादी योग से, बिन दिए वस्तु का ग्रहण ।
है जान चोरी मान हिंसा, घात कारण जिन वचन ॥१०२॥
अन्वयार्थ : [यत् प्रमत्तयोगात्] जो प्रमाद के योग से [अवितीर्णस्य परिग्रहस्य ग्रहणं] बिना दिये (स्वर्ण, वस्त्रादि) परिग्रह का ग्रहण करना है [तत् स्तेयं प्रत्येयं] उसे चोरी जानना चाहिए [च सा एव] और वही [वधस्य हेतुत्वात् हिंसा] वध का कारण होने से हिंसा है ।
Meaning : The taking, by Pramatta Yoga, of objects which have not been given, is to be deemed theft, and that is Himsa because it is the cause of injury.

  टोडरमल