+ हिंसा और चोरी में अव्याप्ति नहीं -
हिंसाया: स्तेयस्य च नाव्याप्ति: सुघटमेव वा यस्मात् ।
ग्रहणे प्रमत्तयोगो द्रव्यस्य स्वीकृतस्यान्यै: ॥104॥
स्तेय में हिंसा नहीं, अव्याप्ति, अपितु सुघट ही ।
क्योंकि पराए द्रव्य की, चोरी प्रमादी योग ही ॥१०४॥
अन्वयार्थ : [हिंसाया: च स्तेयस्य] हिंसा और चोरी में [अव्याप्ति: न] अव्याप्ति नहीं है [सा सुघटमेव] वहां हिंसा बराबर घटित होती है [यस्मात् अन्यै: स्वीकृतस्य] कारण कि दूसरे के द्वारा स्वीकृत की हुई [द्रव्यस्य ग्रहणे प्रमत्तयोग:] द्रव्य के ग्रहण में प्रमाद का योग है ।
Meaning : There is no exclusivity between Himsa and theft. It is well included in theft, because in taking what belongs to another (there is) Pramatta Yoga,

  टोडरमल