+ हिंसा और चोरी में अतिव्याप्तिपना भी नहीं -
नातिव्याप्तिश्च तयो: प्रमत्तयोगैककारणविरोधात् ।
अपि कर्म्मानुग्रहणे नीरागाणामविद्यमानत्वात् ॥105॥
नित वीतरागी के प्रमादी, योग नहिं अतिव्याप्ति नहिं ।
कर्मादि का है ग्रहण उनके, पर न हिंसा स्तेय नहिं ॥१०५॥
अन्वयार्थ : [च नीरागाणाम्] और वीतरागी पुरुषों के [प्रमत्तयोगैकारण-विरोधात्] प्रमत्तयोगरूप एक कारण के विरोध में [कर्म्मानुग्रहणे] द्रव्यकर्म नोकर्म की कर्मवर्गणाओं को ग्रहण करने में [अपि स्तेयस्य] निश्चय से चोरी की [अविद्यमानत्वात्] अनुपस्थिति से [तयो:] उन दोनों (हिंसा और चोरी) में [अतिव्याप्ति: न] अतिव्याप्ति नहीं है ।
Meaning : Nor is there the defect of overlapping. There is no (Himsa), when passionless saints take in Karmic molecules because of the absence of Pramatta Yoga, the chief motive.

  टोडरमल